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अम॑न्दन्मा मरुत॒: स्तोमो॒ अत्र॒ यन्मे॑ नर॒: श्रुत्यं॒ ब्रह्म॑ च॒क्र। इन्द्रा॑य॒ वृष्णे॒ सुम॑खाय॒ मह्यं॒ सख्ये॒ सखा॑यस्त॒न्वे॑ त॒नूभि॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

amandan mā marutaḥ stomo atra yan me naraḥ śrutyam brahma cakra | indrāya vṛṣṇe sumakhāya mahyaṁ sakhye sakhāyas tanve tanūbhiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अम॑न्दत्। मा॒। म॒रु॒तः॒। स्तोमः॑। अत्र॑। यत्। मे॒। न॒रः॒। श्रुत्य॑म्। ब्रह्म॑। च॒क्र। इन्द्रा॑य। वृष्णे॑। सुऽम॑खाय। मह्य॑म्। सख्ये॑। सखा॑यः। त॒न्वे॑। त॒नूभिः॑ ॥ १.१६५.११

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:165» मन्त्र:11 | अष्टक:2» अध्याय:3» वर्ग:26» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:23» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मरुतः) विद्वानो ! जैसे (मे) मेरे लिये (यत्) जो (श्रुत्यम्) सुनने योग्य (ब्रह्म) वेद और (स्तोमः) स्तुतिसमूह है वह (अत्र) यहाँ (मा) मुझे (अमन्दत्) आनन्दित करे वैसे तुमको भी आनन्दित करावे। हे (नरः) अग्रगामी मुखिया जनो ! जैसे तुम (सुमखाय) उत्तम यज्ञानुष्ठान करनेवाले (वृष्णे) बलवान् (इन्द्राय) विद्या से प्रकाशित (सख्ये) सबके मित्र (मह्यम्) मेरे लिये (सखायः) सबके सुहृद् होते हुए (तनूभिः) शरीरों के साथ मेरे (तन्वे) शरीर के लिये सुख (चक्र) करो वैसे मैं भी आपके लिये इसको करूँ ॥ ११ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। विद्वान् जन जैसे पढ़े और शब्दार्थ सम्बन्ध से जाने हुए वेद पढ़नेवाले के आत्मा को सुख देते हैं, वैसे ही औरों को भी सुखी करेंगे, ऐसा मान के वे अध्यापक शिष्य को पढ़ावें। जैसे आप ब्रह्मचर्य से रोगरहित बलवान् होकर दीर्घजीवी हों, वैसे औरों को भी करें ॥ ११ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे मरुतो यथा मे यत् श्रुत्यं ब्रह्म स्तोमश्चाऽत्र माऽमन्दत्तथा युष्मानप्यानन्दयतु। हे नरो यथा यूयं सुमखाय वृष्ण इन्द्राय सख्ये मह्यं सखायस्सन्तस्तनूभिर्मे तन्वे सुखं चक्र तथाऽहमपि युष्मभ्यमेतत्करोमि ॥ ११ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अमन्दत्) आनन्दयतु (मा) माम् (मरुतः) विद्वांसः (स्तोमः) स्तुतिसमूहः (अत्र) (यत्) (मे) मह्यम् (नरः) नायकाः (श्रुत्यम्) श्रुतिषु साधु (ब्रह्म) वेदः (चक्र) कुर्वन्तु (इन्द्राय) विद्याप्रकाशिताय (वृष्णे) बलवते (सुमखाय) उत्तमयज्ञानुष्ठात्रे (मह्यम्) (सख्ये) सर्वमित्राय (सखायः) सर्वसुहृदः (तन्वे) शरीराय (तनूभिः) शरीरैः ॥ ११ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। विद्वांसो यथाऽधीताः शब्दार्थसम्बन्धतो विज्ञाता वेदाः स्वात्मनः सुखयन्ति तथैवापरान् सुखयिष्यन्तीति मत्वा ते शिष्यमध्यापयेयुः। यथा स्वयं ब्रह्मचर्येणारोग्यवीर्यवन्तो भूत्वा दीर्घायुषस्स्युस्तथैवान्यानपि कुर्युः ॥ ११ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्वान लोक जसे वाचलेल्या व शब्दार्थ संबंधांना जाणलेल्या, वेद शिकणाऱ्या आत्म्यांना सुखी करतात. तसे इतरांनाही सुखी करतील असे मानून अध्यापकांनी शिष्यांना शिकवावे. जसे स्वतः ब्रह्मचर्य पाळून रोगरहित व बलवान बनून दीर्घजीवी बनतात तसे इतरांनाही करावे. ॥ ११ ॥